Friday, February 5, 2021

बेहतर

 कुछ किताबों की जिल्द ना उतारी जाये तो बेहतर है ,

कुछ पतंगों की डोर ना पकड़ें तो बेहतर है ,
कुछ अरमान ना हों तो बेहतर है ,
कुछ फरमान ना ज़ारी हों तो बेहतर है ,
कुछ खामोशियाँ ना हो तो बेहतर है ,
कुछ बातें ना कही जाये तो बेहतर है ,
कुछ सपने ना देखें तो बेहतर है ,
कुछ नीर गालों तक ना आएं तो बेहतर है ,
कुछ उमीदों को ना रखें तो बेहतर है ,
कुछ कवितायेँ न सुनी जाएँ तो बेहतर है ,
कुछ अहसास पढ़ लिए जाएँ तो बेहतर है,
कुछ भावनाएं गीत बन जाएँ तो बेहतर है ,
कुछ सुगंध हाँथ में रह जाये तो बेहतर है ,
कुछ आज़ाद बंधन हों तो बेहतर है ,
कुछ चुप्पी शब्द बन जाएँ तो बेहतर है ,
कुछ शाम ठहर जाये तो बेहतर है।
तूलिका।

Thursday, April 23, 2020

खिड़कियाँ

आज बात उनकी है ,
जो "धारा" की एड देखकर जलेबी खाने निकल पड़ते थे ।
आज बात उनसे है जिन्होंने ,
"गरुड़" फोन को नासा का रेडार समझा था ।
आज बात उनसे है ,
जो एक रिंग बजते ही "बीटल" का रिसीवर उठाने दौड़ पड़ते थे ।
आज बात उनकी है , जो माँ के डांटने पर ,
"सवैयों" को हक्का नूडल मानकर खाते थे ।
आज बात उनकी है ,
जो अखबार पाते ही "स्पोर्ट्स" पेज पर पहुंच जाते थे ।
आज बात उनकी है ,
जिनकी नई पोशाकें ,दीवाली ,पूजो और ईद का आना होती थी ।
आज बात उनकी है ,
जिनके लिए "बजाज" ही "इंडिगो" हुआ करता था ।
आज बात उनकी है ,
जो "नान-खटाई" खाने के लिए साल का इंतजार करते थे ।
आज बात उनकी है ,
जिनके लिए "भौंओं" के तनने का विषय ,
आम्रपाली ,दशहरी और लँगड़े का मीठापन हुआ करता था ।
आज बात उनकी है ,
जिनका हफ्ते में एक दिन आलू टिक्की और आइस टी लेना ,फीलिंग ब्लेस्ड होता था ।
आज बात उनकी है ,
जहां गर्मियों की दोपहर में "इश्क़" के पैमाने गढ़े जाते थे ।
आज बात उनकी है ,
जिनके लिए "गूगली गूगली वुश" ही "बीबी" क्रीम हुआ करती थी ।
आज बात उनकी है ,
जिन्हीने "सुमन सौरभ" और "मनोरमा ईयर बुक" में करियर तराशे थे ।
आज बात उनकी है ,
जिनके लिए प्यार "शालीमार" हुआ करता था ।
आज बात उनकी है ,
जो तीन की सीट पर अनजान चौथे को भी जगह देते थे ।
लाज़िम है कि ,हमारे तुम्हारे ,
दोष प्रत्यारोप ,
गलतियाँ छुपाना और ढूंढना सब लॉकडाउन में था ।
और खुले थे दिल , दरवाज़े , दिमाग और गर्मजोशी की खिड़कियां।
तूलिका ।

काम

जो कुछ नही करते ,बड़ा वो काम करते हैं ,
यहाँ की वहाँ जाकर परेशान करते हैं ।
गर मिल जाए उनकी नज़र से नज़र ,
झुक झुक कर कई बार सलाम करते हैं।
करते हैं कल कल और आज की कल ,
बैठा साथ कोई मिल जाये तो ,इत्मिनान करते हैं ।
करते थे कभी दरवाज़े की जो ओट में बातें ,
बातें वही जाकर सरेआम करते हैं ।
समझते हैं हमे नादान , हम कुछ बोलते नहीं ,
हम खामोशी से अपनी दोस्ती कुर्बान करते हैं ।
कि ये तुम की तुम में , दिसंबर और जून में ,
हम जीने का इंतज़ाम करते हैं ।
जेठ की दुपहरी में भी मिल जाती है ठंडक ,
जब मेरे सब्र के चर्चे वो सुबह शाम करते है ।
उम्मीद की छांव में गर बैठ जाओ तुम ,
तो डाल के पंछी भी मंगलगान करते हैं ।
तूलिका ।

Saturday, April 11, 2020

कॉफ़ी

सुबह 3 .15  पर ,
कॉफ़ी और  चीनी  को  फेटते  हुए ,
बिना किसी डालगोना इफेक्ट से प्रभावित हुए ,
समय के दो रंग दीखते हैं ।
श्वेत ,सुन्दर डायरी  का पन्ना खुल जाता है ,
जहाँ कई बार हमने
मीठे ,चटकीले, सजीले रेशमी स्वेटर बुने थे ,
जिसे देखलेने से ख्वाब मुकम्मल हो जाते है ।
पश्मीने सिल्क की शाल मानो कंधो पर खेलने लगती है ।
चिड़ियों की चहक ,पकवानों की महक ,
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का शोर ,
बाइक के शीशे से झांकता मन का चोर ,
बच्चों के खेलने और हर बॉल पर बॉउंड्री की आवाज़ ,
रूह को छू सी जाती है ।
तभी एक धुंधला ,हल्का भूरा ,
मानो सूखे पेड़ की ठूंठ सा ,
पतझड़ में पिली सड़क सा ,
हवामहल के पास उड़ती रेत सा ,
चंद्रभागा के किनारे पानी के साथ आये सीप सा ,
सोन नदी के किनारे बने टीले सा,
ढाकबनी  के लाल पत्थर सा,
गोधूलि शाम सा महसूस होता है ।
जो उल्लास की सुबह का इन्तिज़ार कर रही  है ।

तूलिका  ।

Friday, October 11, 2019

कॉफी हाउस

माल रोड के इस कैफ़े के आसपास,
आज भी कोई मॉल नहीं है ,
आज भी कॉफी बीन्स की खुशबू ,
कैफ़े में घुसते ही पचास दशक पुरानी है .
पीली डिम लाइट ,
पंचम और बप्पी दा की संगीत की धुन ,
शे गुवेरा का पोस्टर ,
1977 की बेस्ट कैफ़े अवार्ड की ,
लैमिनेटेड तस्वीर ,
सब वैसे ही है,
जब तुम थीं ।
मैं आज भी हर रोज़ ,
दरवाज़े से बाईं से तीसरी टेबल पर बैठता हूँ ,
जहाँ पीछे को खिड़की खुलती है ,
और तुम मेरे सामने बैठकर ,
बाहर खड़ी कारों को गिनती थी .
सब है बस तुम नहीं हो ,
तुम्हारा अहसास ,
तुम्हारी खुशबू ,
तुम्हारीं बातें ,
तुम्हारी यादें ,
तुम्हारा खालीपन सब ।
सोचता हूँ मेरे इन खुरदरे हांथों को ,
तुम्हारे हाथ फिर से छूते और कहते ,
हम हैं ना ..
मैं आज भी यहाँ फ़िल्टर कॉफी पीता हूँ ,
बस फर्क इतना है शक़्कर नहीं लेता ,
शक़्कर ना कॉफी में है ,
ना ज़िन्दगी में ।

तूलिका ।