Thursday, November 3, 2011

परिंदा


परिंदा 

शोर कोतुहल से कही दूर ढूंढ़ता है बसेरा ,
ये मन का परिंदा |
वो मीठी मुस्कान ,वो पिली सरसों का डेरा ,
ये मन का परिंदा |
फ़िक्र भी उड़ती रहे ,जहाँ  निश्चिन्त  हो सवेरा ,
ये मन का परिंदा |
चांदिनी  रात  घास पर ओस का घेरा , 
ये मन का परिंदा  |
साथ ऐसा  जो  ना  हो मटमैला ,  
ये मन का परिंदा |
ऐसी  ज़मी  जहा खुशियों  का हो मेला,  
ये मन का परिंदा \
मुल्क   ना   सरहद  ना सीमओं  ने  हो टोका  ,
की  अनंत  आकाश  को  उड़ने  चला  ,
ये मन का परिंदा |

तूलिका

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