परिंदा
शोर कोतुहल से कही दूर ढूंढ़ता है बसेरा ,
ये मन का परिंदा |
वो मीठी मुस्कान ,वो पिली सरसों का डेरा ,
ये मन का परिंदा |
फ़िक्र भी उड़ती रहे ,जहाँ निश्चिन्त हो सवेरा ,
ये मन का परिंदा |
चांदिनी रात घास पर ओस का घेरा ,
ये मन का परिंदा |
साथ ऐसा जो ना हो मटमैला ,
ये मन का परिंदा |
ऐसी ज़मी जहा खुशियों का हो मेला,
ये मन का परिंदा \
मुल्क ना सरहद ना सीमओं ने हो टोका ,
की अनंत आकाश को उड़ने चला ,
ये मन का परिंदा |
तूलिका
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