Monday, October 7, 2019

ख़ुशी

तुम कभी कभी मुझे ,
VLC पर चल रहे गाने की तरह लगती हो ,
जिसमे फ़र्क़ डयूरेशन  का होता है ,
5 मिनट भी वैसा ही दीखता है
जैसा 55 मिनट ,
अंतर् सिर्फ ठहराव का है ।

नहीं ,
तुम कभी अपने आप नहीं बनती ,
तुम्हे हम अब ऐप में ढूंढते हैं ,
अपने ऐब को ऐप में छुपाते हैं,
और फिर दिल की नहीं ,
व्हाट्स इन योर माइंड की पोस्ट करते हैं ।

तुम आजकल मिलती ही कम हो ,
आ भी गई तो बैठती कम हो ,
ठहरती तो ज़रा भी नहीं ,
तुम्हारा शेयर मार्किट हमेशा डाउन रहता है ,
लेकिन इमोजीस के व्यापर में ,
तुम काफी मशगूल हो ।


एस्पलेनैड मॉल में भी मलाल सा रहता है ,
क्यूंकि तुम सैकड़ों में ,
घूमती ,फिरती ,उछलती ,कूदती ,
दीखती तो हो ,
लेकिन मेरे पास नहीं रूकती ,
बस पास से गुजर जाती हो ।

कई बार चटकीले रंग मै नहीं ओढ़ती ,
कई बार अच्छी तस्वीर भी पोस्ट नहीं करती ,
कई बार अरिजीत सिंह की कॉलर टयून भी नहीं लगाती ,
तुम्हारा ना होना ,
कई बार आँखों को नम करता हैं ,
गला रुँधता हैं ,
बेटा कहता हैं हनुमान जी नाराज़ हैं ,
इसलिए तुम्हे आंसूं आये हैं ,
क्यूंकि वो नाराज़ थे ,
तो फानी भी आया था ।


खैर ,
मुझे मालूम हैं ,
तुम अभी बाईपास रोड पर हो ,
और अबकी आओगी ,
तो सिम्फनी की तर्ज़ पर ,
हर दिन , हर क्षण ,
चहचहाओगी ,
मेरी अपनी बालकनी  में ,
जहाँ रोज़ सुबह कबूतर दाना खाते हैं ।

तूलिका ।