Saturday, July 8, 2017

ज़ार ज़ार

ज़ार ज़ार
मेरा इन्तिज़ार ज़ार ज़ार रहा
तुम्हे इकरार कहीं और रहा
मै सब्र की आहें  फैलाई रही
तू बेसब्र कहीं और रहा !
मेरा इन्तिज़ार ज़ार ज़ार रहा

मेरी रूह तुम्हे इंकार रही
तुम्हे इकरार कहीं और रहा
मै ख्यालों में ढूंढती रही
तू बाँहों में कही और रहा
मेरा इन्तिज़ार ज़ार ज़ार रहा

वो पुदीने की चटनी ,
वो सब्ज़ी पुलाव ,
छन छन कर जलते रहे अलाव
मै मद्धम आंच में पकती रही
तू प्यालों को वही सजाता रहा
मेरा इन्तिज़ार ज़ार ज़ार रहा
तूलिका