Wednesday, August 2, 2017

घर

घर
शीशे पर अब भी अनगिनत बिंदियां होंगी ,
ड्रावर में कई चूड़ियां होंगी ,
कई जोड़े चप्पल दरवाज़ों की कोनो पर होंगे ,
वो लाल ज़रीवाली चप्पल अभी भी टूटी पड़ी होगी ,
शायद चादर के रेशे में एक जोड़ी बिछिया होगी ,
एक छोटे संदूक में पायल  और बालियां भी ,
पूजाघर में मेरी रामायण होगी ,
चूल्हे के नीचे रैक में
कई मसाले होंगे ,
ऊपर की शेल्फ में ,
चूल्हे के बायें तरफ ,
बादाम का पैकेट होगा ,
दीवारों पर मेरे अरमान होंगे ,
बुकशेल्फ पर मेरी इक्छाएं होंगी
रोशनदान से मेरी यादें झांक रही है ,
मेरे सपने से सजे  ,
रंगीन पर्दों को ,
मेरे अपने  घर में .
तूलिका