Monday, September 16, 2019

यक़ीन


डबल टिक से हो जाये जब बात मनमानी,
मोहाल के तिराहे पर कौन दीखता है ।

जर्जर हो चले हैं पैग़ामो के संदूक ,
पीले कागज़ के खत में इत्र कौन छिड़कता है ।

पास आकर गुनगुनाये जो हर नग़मा ,
वो दिन ढलने पर रंग बदलता है ।

तकदीर और तदबीर में फासले हैं मगर ,
उम्मीद की फसल यहाँ कौन बोता है ,

यूँ तो कई बार लहराए हैं हमने परचम ,
हर बार कहाँ खुशरंग दिया जलता है ।

चन्द्रयान से संपर्क की जद्दोजहद में ,
मन की तरंगों को यहाँ कौन जोड़ता है ।

यकीन को यकीनन बदलना है ज़रूर ,
वरना डूबते सूरज को कौन पूजता है ।

तूलिका ।