कई अफसानों को तरन्नुम की तलाश होती है ,
बमुश्किल हो सुख़नवर को , जब हस्ती शिखर के पार होती है .
पाशा -ए -शहर में कौन है ऐसा ?
जहाँ परेशानियां मिलकर तमाम होती है .
हुमज़ुबाँ ,हमराह दीखते हैं सब ,
कौन चलता है साथ जब अमावस की रात होती है .
जिधर देखिये जोर आज़माइश सा है ज़लज़ला ,
कम है जिनमें मिटटी की सुगंध साथ होती है .
धूप, धूल , धुएँ के कहकहों में भी ,
आँखों में अर्श-ए- चमक साथ होती है .
इबादत हो जाती है शहर -ए-हुजूम की आदत ,
जब क़ाबलियत पंखों की उड़ान होती है .
तूलिका .