Monday, June 12, 2017

चेहरा

किधर से किधर तक ,
है गुम्नाम चेहरा !
पड़ोसी है या पहना कोई सेहरा ,
माना था सम्बल ,
था रिश्ता उससे गहरा ,
किधर से किधर तक ,
है गुम्नाम चेहरा !

औटो से आना ,
बच्चे का खाना ,
दो दूध का पैकेट ,
ब्रेड और मखना ,
टिफिन का झोला ,
कंधे पर,
दो बैगो को और सजाना ,
किधर से किधर तक ,
है गुम्नाम चेहरा !
पड़ोसी है या पहना कोई सेहरा

ना कोई फोन खनका ,
तुम्हारा उधर से ,
ना तुम्हारी कोई ,
आवाज़ आई ,
ना पुछा किसी ने ,
की तुम क्या खाइ ,
की बच्चे ने ओदी थी ना रजाइ
किधर से किधर तक ,
है गुम्नाम चेहरा !
पड़ोसी है या पहना कोई सेहरा

वो कड़कती थी शामे,
ना बिजली थी आती ,
हम मा बेटे ने ,
भए मे कई रातें थी काटी ,
चार कमरे ,
सोलाह दीवारें ,
मा बेटे ने ,गिन गिन गुज़ारे .
तुम्हारी झूठी ओट का था पहरा
जिनकी आखे थी अंधी ,
कान था बेहरा ,
किधर से किधर तक ,
है गुम्नाम चेहरा !
पड़ोसी है या पहना कोई सेहरा .

माना की तुम काबिल बहुत हो ,
फिर तुमने क्यू ये साफा है पहना ,
अपने इरादो के पक्के धनी हो ,
फिर झूठ के परचम तुम क्यू बने हो ,
तुम तो सितारो के सरगम बने थे ,
ये किसके नक्शे कदम पर चले हो ,
कोई ना किसी का है साथ देता ,
पांच साल मे कहा तुम खड़े हो?
कायल बने हो,घायल कर रहे हो,
थोड़ा तो सोचो ,मंथन करो तुम ,
या कही छिपा है कोई राज़ गहरा ,
किधर से किधर तक ,
है गुम्नाम चेहरा !
पड़ोसी है या पहना कोई सेहरा !
तूलिका .