Sunday, August 7, 2011

अंतर्नाद


अपनी ही आवाज़ और अपनी ही ख़ामोशी 
अपना ही साज़ अपना ही राग 
अपना ही भ्रम और अपना ही द्वन्द 
अपने ही उत्तर अपने ही प्रश्न 
दूर बंजर जीवन उपवन 
अपना ही मन अपनों से तंग 
अपनी ही आवाज़ अपनी ही ख़ामोशी|

कहीं टीसती है वो धड़कन ,कि अपने भरे नयन ,
ना कहता ,ना सुगबुगाता ,कही फुसफुसाता अंतर्मन  ,
हवा भी रुख बदलती कि अब सूखा है वो अंचल ,
जहा मदमस्त खिलखिलाती थी उसकी हंसी ठन ठन,
कि अपनी ही आवाज़ अपनी ही ख़ामोशी| 

तूलिका |

Courtesy ,conversation with a friend



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