Monday, August 15, 2011

आरोह



 नया बसेरा नई राहें 


पार करनी है, कई दीवारें ,


यूँ तो उड़ते हैं कई परिंदे ,

कई ठीलों ,कई दरिया से ,


नए सफ़र नए कारवां में,


कि नया बसेरा नई राहें |





कि तुम उड़ना जहा नया आकाश हो ,


गम कि न कहीं स्याह हो ,


कि नई ज़मी नई राह हो ,


असीम हर्ष की ही ठ्याह हो , 


कि नया बसेरा नई राहें |





मिलेंगे नए राही,


नए सफ़र ,नए डगर में ,


लगेंगे कई अपने भी, 


तुम्हे नए नगर में ,


सुलझेंगी गुत्थी  खिलेंगी आशाएं ,


कि नया बसेरा नई राहें |





न ठहरो ,न रुको न थमो तुम, 


चाहे कितने  भी पंख  तुम्हे निहारें,


की लक्ष्य दृढ है तुम्हारा अगर ,


प्रतिकूल दिशाएं भी तुम्हे सराहें ,


कि नया बसेरा नई राहें|





तूलिका |

Courtesy ,conversation with a friend .


1 comment:

  1. बहुत सुन्दर लिखा है.....
    उठो जागो और तब तक न रुको जब तक अपने ध्येय तक नहीं पहुंच जाते हो.......................

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