माझा
मस्तिष्क तंत्र और मन तरंग ,
दोनों में वार्तालाप हुई ,
चलो हम दोनों अब चलते है साझा ,
तयारियाँ शुरू हुई ,
दोनों ने अपने अपनों को बताया ,
हम जा रहे है ,
जहा दूर तक सिर्फ ख्वाब था सजाया ,
कि दोनों में वार्तालाप हुई ,
चलो हम दोनों चलते है साझा |
पड़ोसियों ने कई अनुभव सुझाया ,
हाँथ ने कहा तुम खूब थकना ,
जिह्वा ने कहा तुम चुप रहना ,
आँखों ने कहा तुम चंचल न बनना ,
कही धीमी आवाज़ आई , ज्यादा मत मचलना ,
सभी ने अपनी सहमती जताई ,
कि दोनों में वार्तालाप हुई ,
चलो हम दोनों चलते है साझा |
दो अलग राही ने अब एक मंजिल बनाई,
खेली कई पहेलियाँ ,कि कई अनबन मनाई ,
ये उनको बताया ,ये उनसे छुपाई,,
वो दायरे घटाए कि निजता बढाई,
कि दोनों में वार्तालाप हुई ,
चलो हम दोनों चलते है साझा |
तयार होकर जैसे ही दोनों निकले
कि बाज़ार ने उनकी मांग बड़ाई ,
कि ये लेलो हम ये देंगे ,
कि वो लेलो हम वो द्नेगे ,
अनभिग्य दोनों असमंजस में ,
न बिकने कि काफी जुगत लगाई,
न मस्तिष्क संभला,न मन तरंग बच पाई,
जो जिसके जी में आया वो उनको सुनाई,
कि दोनों में वार्तालाप हुई थी ,चलो हम दोनों चलते है साझा |
अनायास ही दोनों पतंगबाज़ के हाँथ पहुंचे ,
दोनों को कागज़ में सजाकर ,
तीलियों से बुनकर ,दो पतंगे बनाई,
दो अलग अलग परती में,
दोनों को घुमाया ,तोडा ,जोड़ा ,मोड़ा ,
और फिर दोनों को ,
दो अलग अलग छत से उड़ाया,
चलो हम दोनों चलते है साझा |
न कुछ हो पाया उन सुझंवों का
उस सहमती का ,
उन साझा वादों का ,उन एक इरादों का ,
थी तो बस-
दो अलग माझों में उलझी उड़ती,
कभी साझा चलने कि चाह रखने वाली ,
सिमटती ,पिघलती ,,
अपने में ,अपनों से जड़ती ,
मस्तिष्क व मन तरंग |
तूलिका
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