Sunday, August 21, 2011

चुप चाप

चुप चाप -

वो आया चुप चाप ,
वो हंसा ,मुस्कुराया ,
कहा ,सुनाया ,
वो ठहरा चुपचाप ,
वो आया चुपचाप !

ना बैठा ,खड़ा था ,
कहा था रहूँगा ,
जो होसकेगा ,
मै वो करूँगा ,
थी उसने मन में ,
अलख ये जगाई ,
चुपचाप चुप चाप 
वो आया चुपचाप !

पानी के  छींटे ,
हंसी के टिके ,
थे ना गर्दिश ,
सिर्फ  गूंजे लतीफे ,
बनती थी सुबह की ,
साथ चाय चुपचाप 
वो आया चुप चाप !

सपनो का बनना,
दीयों का जलना ,
रिश्तों की सिलवटों ,
में नई गांठ खुलना ,
रात  में गुनगुनाकर 
दिन में संभलना ,
सब  चुपचाप ,
वो आया चुपचाप !


फिर हर  पल का ,
अचानक पलटना ,
गढ़े सपनो को ,
एक सुर में झटकना ,
न कोई धुन,
न कोई राग सुनना ,
हुआ तय लय का,
प्रलय में बदलना ,
चुप चाप ,
वो आया था चुपचाप !


सफ़र में वो,
कही  रुक गया चुपचाप ,
ना बोला न कहा, 
ना सुना ही चुपचाप ,
कदम आस में थे ,
पुकारेगा चुपचाप ,
नज़र चलती राहों पर ,
टिकी थी चुपचाप ,
न डिगा ,न हिला ,
न दिखा दूर तक ,
कहीं ओट से हम  ,
निहारते रहे चुपचाप ,
की वो आया था चुपचाप !

तूलिका !

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