चुप चाप -
वो आया चुप चाप ,
वो हंसा ,मुस्कुराया ,
कहा ,सुनाया ,
वो ठहरा चुपचाप ,
वो आया चुपचाप !
ना बैठा ,खड़ा था ,
कहा था रहूँगा ,
जो होसकेगा ,
मै वो करूँगा ,
थी उसने मन में ,
अलख ये जगाई ,
चुपचाप चुप चाप
वो आया चुपचाप !
पानी के छींटे ,
हंसी के टिके ,
थे ना गर्दिश ,
सिर्फ गूंजे लतीफे ,
बनती थी सुबह की ,
साथ चाय चुपचाप
वो आया चुप चाप !
सपनो का बनना,
दीयों का जलना ,
रिश्तों की सिलवटों ,
में नई गांठ खुलना ,
रात में गुनगुनाकर
दिन में संभलना ,
सब चुपचाप ,
वो आया चुपचाप !
फिर हर पल का ,
अचानक पलटना ,
गढ़े सपनो को ,
एक सुर में झटकना ,
न कोई धुन,
न कोई राग सुनना ,
हुआ तय लय का,
प्रलय में बदलना ,
चुप चाप ,
वो आया था चुपचाप !
सफ़र में वो,
कही रुक गया चुपचाप ,
ना बोला न कहा,
ना सुना ही चुपचाप ,
कदम आस में थे ,
पुकारेगा चुपचाप ,
नज़र चलती राहों पर ,
टिकी थी चुपचाप ,
न डिगा ,न हिला ,
न दिखा दूर तक ,
कहीं ओट से हम ,
निहारते रहे चुपचाप ,
की वो आया था चुपचाप !
तूलिका !
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