अभिप्रेत
अँधेरे के पार बहुत दिनों बाद
इच्छा हुई उसको बुलाएँ
पास बिठाएं मनाएं बनाये कुछ नवीन ,
रंगों से लवलीन
कथोपकथन के बीच शुरू हुई तस्वीर
जिज्ञासा .आशा,हंसी ठिठोली
मानो हर रंग हों हमजोली ,
इनका जेहन में स्वत उतरना लगा सरल आगाज़ ,
फिर मानो नगण्य संभावनाएं और सपने बन रहे हों रिवाज |
लेकिन रंगों की प्रकृति से अनजान,
भूल बैठी की ये तो विविध है ,
कुछ कहीं वीरान तो कुछ कहीं समीप है ,
आमोद स्मिति मानो दरवाज़े के ओट से ,
निहारते है ,सवारते है ,मुस्कुराते है ,
अंगीकार को तरसाते है ,
और जैसे ही त्वारापूर्ण हो मै उपक्रम करती हू ,
यह बड़ी आसानी से ,
निरुद्ध दिशा होकर ओट से देखना भी बंद कर देते है ,
विज्ञ जानकर अनायास ही अभिप्रेत तस्वीर में ,
मैंने विमल अनुराग भरने की कोशिश की ,
लेकिन अभी देखती हूँ तो तस्वीर के खाके में ,
आह्लाद से विमुख
सिर्फ पराभव ,पीड़ा ,विरह ,हताशा ,
द्वन्द और वेदना के रंग ही दिखते है |
तूलिका
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