उड़ान
मै एक लड़की हू,
मनो बंद पारदर्शी ,
जाली लगी खिड़की हूँ ,
बहार घटित हो रहे
प्रत्येक तथ्य को ,
देख सकती हू ,
महसूस कर सकती हू ,
लेकिन बहार निकलने से सिसकती हूँ
क्यूकि मै एक लड़की हू |
क्यूँ हूँ मै ऐसी ,
क्यूँ नहीं उनके जैसी ,
स्वछंद अनंत आकाश में ,
उडू पंछी जैसी ,
जिसे केवल खाना है और उड़ते जाना है ,
औरों को विस्मृत कर ,
खुद लुप्त हो जाना है |
चाहती हूँ मै भी ,
बनाऊ एक घोसका ,
जिसके लिए मुझे ,
जिस रस्ते हो गुज़रना,
दोपहर बारह बजे हो या रात्रि के बारह ,
न झेलना पड़े मुझे कौन्वो का वो नज़ारा ,
निकल बाहर मै भी ,
उठा लाऊ घास का टुकड़ा ,
और फिर ,
और फिर माँ को करूँ आश्वस्त
वो रहे हमेशा स्वस्थ ,
नाज़ हो मुझपर ,
की मै भी चड़ूगी ,
उड़ूगी ,बहुत उड़ूगी,
उस अनन्त असीमित आकाश में ,
जहाँ अन्य विविध पक्षी भी है |
तूलिका
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