Thursday, October 13, 2011

प्रवास



प्रवास 

चिड़ियों  का  चहचहाना   
वो माँ  का   उठाना  ,
वो डांटना  चिल्लाना ,
वो आँखे  दिखाना ,
की सूरज  है सर  पर ,
है गेहूं  सुखाना ,
रह रह सताता है घर से दूर जाना |

छोटी  का  हँसाना  ,
वो इतराकर  बिदकना ,
कमसिन  उम्र  में  भी,
समझदार बनना ,
की तुम  उड़  पडोगी ,
है आकाश  छूना  .
रह रह सताता है घर से दूर जाना|

पिता  का  ओट  से वो पल  पल  निहारना ,
नजदीक  आकर  वो भोहे  चढ़ाना ,
की ये  राजनीति ,
वो सामाजिक  धारणा ,
 चाहकर भी है दायित्व  निभाना ,
रह रह सताता है घर से दूर जाना |

सब  कमरे  वही  है,
बालकनी  वही  है,
तीन  डैने  वाले  वो पंखे  वही  है,
वो आँगन  ,वो छत   ,वो दीवार  वही  है,
दीवार  पर  लगे  मैप   वही  है ,
 बदली  तस्वीरें  ,वो आयना  वही  है
बदल  रहा  बस  कलेंडर 
वो उम्र   के  हफ्ते  ,महीने  है  बदले 
है बदले  कई  सालों    के अपने है बदले  ,
की सपनो को  बुनना ,
है उनको  है पाना ,
रह रह सताता है घर से दूर जाना |


ये  घडी  भी निभाना 
की पलकें  भिंगाना   ,
रफ़्तार  पकडती  ट्रेन  से,
दूर तक  हाँथ  हिलाना ,
की लम्बे  सफ़र  में ,
है कई  मक़ाम  पाना, 
रह रह सताता है घर से दूर जाना |

तूलिका