Wednesday, September 18, 2019

आँखें

गोधूलि सी ,सुगबुगाती बोलती आँखे ,
पेड़ों सी झाकती ,ताकती आँखें ,
हरियाली सी ,रास्ते की ,लहलहाती आँखें ,
धीर सी ,गंभीर सी ,सुरीली आँखें ,
जांचती , पड़तालती ,उन्मादी आँखें ,
चहकती ,लहकती ,बांचती आँखें ,
निहारती ,बतियाती ,वो शांत सी आँखें ,
खोजती ,तलाशती ,तराशती आँखें ,
कभी गड्ढों में पलती ,
वो कोयली आँखें ,
उलझती ,निकलती ,जंग सी आँखें ,
पूछती ,चीखती ,विद्रोह सी आँखे ,
नीली ,पीली ,लाल सी आँखे ,
लीची सी , बटन सी ,बादाम सी आंखे ,
कभी पीसी ,टीसी ,तराई सी आँखें ,
वो झूमती , झूलती ,टहलती आँखें ,
अपनों की , अपनी , प्रभास सी ऑंखें ,
स्पर्श सी ,सुकून सी ,आभास सी ऑंखें ,
जीत की ,उल्लास की ,चमकती आँखें ,
ग़मों को संभालती ,सहराती आँखें .
शाम सी ,
आम सी ,खेलती आँखें ,

तूलिका .

Monday, September 16, 2019

यक़ीन


डबल टिक से हो जाये जब बात मनमानी,
मोहाल के तिराहे पर कौन दीखता है ।

जर्जर हो चले हैं पैग़ामो के संदूक ,
पीले कागज़ के खत में इत्र कौन छिड़कता है ।

पास आकर गुनगुनाये जो हर नग़मा ,
वो दिन ढलने पर रंग बदलता है ।

तकदीर और तदबीर में फासले हैं मगर ,
उम्मीद की फसल यहाँ कौन बोता है ,

यूँ तो कई बार लहराए हैं हमने परचम ,
हर बार कहाँ खुशरंग दिया जलता है ।

चन्द्रयान से संपर्क की जद्दोजहद में ,
मन की तरंगों को यहाँ कौन जोड़ता है ।

यकीन को यकीनन बदलना है ज़रूर ,
वरना डूबते सूरज को कौन पूजता है ।

तूलिका ।

Wednesday, September 11, 2019

बातें

मेरी बातें ,
मेरी बातें ,कई बार ,
सरकारी दफ्तर की परत ज़मी मेज़ पर ,
जिसके अधखुले ड्रावर को ,
लोहे की पतली तार से बांधा गया हो ,
पर रखी फाइलों में ,
पीले कागज़ पर गढ़ी है ,
मेरी बातें .

मेरी बातों  में कोई ट्विस्ट नहीं है ,
मेरी बातों पर कोई ट्वीट नहीं है ,
कइयों के लिए ,वो स्वीट नहीं है .
मेरी बातों में हर लम्हों में कहानियां है ,
इंस्ट्राग्राम स्टोरीज नहीं है .
मेरी बातें .

मेरी बातें ,
वक़्त की शाख पर ,
टिक टिक चल रही है ,
टिक टॉक पर ,
उनका अकाउंट नहीं है .
मेरी बातें .

फीड्स , 
फॉलोवर्स ,
व्यूज़ के बाजार में , 
मेरी बातें अनुभव से सबक को फॉलो करती है ,
मेरी बातें .
मेरी बातें . 

तूलिका 





अच्छा नहीं होता

खिड़कियों को खोलना ,
हमेशा अच्छा नहीं होता .

अच्छा नहीं होता,
हमेशा ,
बुलबुलों का मुंडेर पर बैठना .

हवाएं सांस देती तो है ,
लेकिन ये हमेशा तो नहीं होता  .

दरवाजे  की  देहरी  पर खड़े  होकर  ,
हमेशा किसी  एक ओर  देखना  ,
अच्छा तो नहीं होता .

माना है ,
कुछ रोशन दान ज़रूरी है घर के वास्ते ,
लेकिन हर उजाला रौशनी नहीं तो होता .

ज़रूरी नहीं आँखों  में  हर सपनों  को बुनना ,
हर बार उनका चटकना ,
अच्छा तो नहीं होता .

चलो मुस्कुराना बनालो रिवाज़
हर जंग लड़ना अच्छा नहीं होता .

तूलिका .


Monday, September 2, 2019

हस्ती


कई अफसानों को तरन्नुम की तलाश होती है ,
बमुश्किल हो सुख़नवर को , जब हस्ती शिखर के पार  होती है .

पाशा -ए -शहर में कौन है ऐसा ?
जहाँ परेशानियां मिलकर तमाम होती है .

हुमज़ुबाँ ,हमराह दीखते हैं सब ,
कौन चलता है साथ जब अमावस की रात होती है .

जिधर देखिये जोर आज़माइश सा है ज़लज़ला ,
कम है जिनमें मिटटी की सुगंध साथ होती है .

धूप, धूल , धुएँ के कहकहों में भी ,
आँखों में अर्श-ए- चमक साथ होती है .

इबादत हो जाती है शहर -ए-हुजूम की आदत ,
जब क़ाबलियत पंखों की उड़ान होती है .

 तूलिका .


सावन

छलक जाते हैं वो आंखों से ,
जो एक गांठ बनकर ,
उन तारों को हम फिर कागज़ में पिरोते हैं ।
रखी हुई यादों की वो पीली सी गट्ठर,
हम ढूंढ कर ताखों पर फिर संजोते है ।
कई बार यूँ भी हुआ उनका कहकहा ,
हम 5 के तापमान पर पंखा झोलते है ।
ओस की आस में सूरज को देखते देखते ,
कई बार रास्तों में पलाश ढूंढते है ।
लो आ गया झूमता फिर सावन का महीना ,
लो हम फिर एक बार हंसी बोते हैं ।
तूलिका ।