नन्हे पखेरू

1-जिन्दगी तो खुद ही कही जिन्दगी तराशती रही ,

जीने की मोहलत न सही ,शोहरत जुटाती रही ,
आज की खबर का क्या करना ,
कल के लिए आंसूं बचाती रही ,
गम की चादर न रहे ,
इसलिए खुशियाँ उगाती रही ,
हर लम्हे में एक सांस तलाशती  रही ,
की जिन्दगी तो खुद ही कही जिन्दगी तराशती रही ,

2-नाम से जूझते अस्तित्व संग्राम में ,
अनायास ही ताख पर चढ़ जाते है कई नाम 
और कई  द्वन्द से भिड़ते ,
समझ नहीं पाते,
वो है ईमान या बन रहा बईमान ,
उन्हें  साथ देती है कोई ज़मी ,
ना आसमान,
फिर क्या ........
शहर गुमनाम ,सफ़र गुमनाम 
समय गुमनाम शख्स गुमनाम !



3- बढ़ रही जिस तरह मूल्यहीनता ,
बोझ बन रही चरित्रशीलता ,
अमन दूर फिजाओं पर अब ,
हंसती है कौमी एकता ,
तानाशाही परतंत्र में सच कहीं शोक मनाता होगा ,
गम है आज़ादी के मातम पर ,
 मातम कोई मनाता होगा 

(2,3-रचना मुख्पुस्तक पर मित्र के वाल पोस्ट के सम्बन्ध में लिखी गई थीं )

4- बिन उसके भी रोज़ चाँद आता है 

की चांदनी में वो मुस्कुराता है शायद ,
खिलती है कलियाँ भी कही ,
जो कभी उसकी शोखी से शर्माती थीं शायद |

5-वक़्त बदला ,नज़र बदली ,
 शोखी  भी टीसने लगी ,
 आवाज़ नम परवाज़    की 
 तल्ख़   सी   दिखने   लगी |

   
6- जो लिख दिया ,वो लकीर   सही ,
  जो मिट गया वो तकदीर  सही ,
  जब शब्द  बेमानी करते है ,
  तो  कोई  अपना  पराया सही |


7-तदबीर नहीं देता कोई ,
 इसे बनाते है हम कभी कभी ,
 रखते है मुगालता ,
 ये की खिचता है कोई ,
 हैरत नहीं इसे लिखते है हम कभी कभी !

8- दुआ ,सच्चाई ,इंसानियत और अच्छाई,

आसां ना मुश्किल इनकी परछाई,
दुःख की धुप और शाम की तन्हाई ,
की हर पल ,हर लम्हे में ,
ज़िंदगी खिलखिलाई !

9-नामुमकिन नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये ,

हाँ वक़्त पर भरोसा  ना इमां बेचिए ,
सच है वो दौड़  रहा है ,कई सालों पीढ़ियों से ,
ना बदलेगा ,एकदिनी ,
अनशन ,आन्दोलन की तीलियों से ,
रग की रवानी की रफ़्तार बदलिए 
नामुमकिन नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिये !


10-ज़िंदगी के आशियाने में पल न आता है बार बार ,

की इसकी खुसबू को करो सहर्ष स्वीकार ,
यूँ तो जीते है वो भी ,जो है निर्जीव बेकार ,
की तुम चहको,महको ,बहको ,
हर पल बार बार !


11 दुश्वारियों के मंज़र अब सताते नहीं ,

  धूल खाती नमी अब सुगबुगाती नहीं ,
  आस बुनते बिगड़ते खनखनाते नहीं ,
  ख़राब होकर भी ये ज़िंदगी ख़राब नहीं !


12-जो बिकता है वही चलता है ,

आज जिंदा है ,
वही पनपता है ,वही फूलता है ,
फासंता है ,गिराता है ,
और जो न बिक सका 
वो दूर कहीं ,
जीने और हंसी की आस बस लगाता है !


13-वो बोझल आँखे ,वो तनहा दिल ,

वो माँ का आंचल ,वो बहता पीर ,
वो उम्र की लकीरें ,ओरोँ से ओझिल ,
है सब पर सुना नीड़,
ना नमक ,ना शहद , ना खटास ना तीख,
खोजती आँखे वो अपना मीर!

  
 14-मुस्कान के साथ हेर साँस का चलना

गम दरकिनार कर अपनों से मिलना ,
शोहरत हो पर दूर न हो वो सपना ,
जिसे देखा है उस जाया ने बनना ,
की मुश्किल नहीं ज़िंदगी का संभालना !


15-मुश्किल नहीं कुछ भी अगर ठान लीजिये ,

बस समय और रुख का इन्तिज़ार कीजिये !


16-मुलाकात के मंज़र में जो अक्स दीखता है तुम्हे ,
पहचानता है सवारता है बहलाता है तुम्हे 
की तुम हो तो जेहेन में चहकता है कहीं ,
चुप रहकर सावन में बहकता है कहीं
अमावस में भी चाँद  बन रौशन करता है तुम्हे 
कि मुलाकात के मंज़र में जो अक्स दीखता है तुम्हे ,

तूलिका

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