Tuesday, June 11, 2019

पुरानी चादर

पुरानी  चादर

माथे पर आई लकीरें ,
अब पार्क में दीखती हैं।
ठहाके लगाते चेहरे ,
अब सुबह टहलते हैं ।
कुछ सुकून भरी उँगलियाँ ,
108 दानो को गीन रही हैं ।
जोड़ों के दर्द को ढकते हुए ,
कुछ जोड़े गुरूद्वारे में रोटियां बेल रही हैं ।
कुछ जोड़ी हाँथ ,
नन्हे हांथों के साथ बसस्टैंड पर खड़े हैं ।
कुछ मायूस निगाहे ,
डाकबाबू का इन्तिज़ार कर रही हैं ।
कुछ काँपती आवाज़ें ,
टचस्कीन को टच कर रही हैं।
कुछ आशाएं झुर्रियों के साथ ,
बेंच पर बैठी हैं ।
कुछ उम्मीदें,
उन सूत के धागों को गीन रही हैं ,
जो दशकों से ,
अनगिनत चौकियों पर बिछी हैं ।

तूलिका ।