कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
झूठ या सच
की फेहरिस्त में ,
लबलबाना तुम्हे .
जो लाज़मी है ,
उसे भुलाकर तुम्हे ,
कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
काश मैंने भी सुना होता ,
छठी इन्द्रियों की आवाज़
जो सच थी और है
जो मुझे अनजाने तारीफ सी लगी ,
उसे फटकार कर तुम्हे ,
कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
बंधन की आज़ादी
न भाई तुम्हे ,
पति पिता की उपाधि से ज़्यादा
पुरुषत्व के यश को
चाहा तुमने
कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
कसमसाई सी मेरी आंखे
काश सुख जाती ,
कहकहों के आदि मेरे कान
काश बधिर हो जाते ,
माँ का दिल
काश पत्थर हो जाता ,
लबलबी मांगों को
काश सौंप पाती तुम्हे ,
कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
उस सपनो को जीने की
कोशिश की मैंने ,
जिसके लिए
न तैयार कर पाई तुम्हे
कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
इनको ,उनको ,उसको ,
माँ ,पिता ,भाई ,सबको
अरमानो की छत पर बिठाकर
मुझे ,दफनाया है तुमने
कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
सुरमई एक छोटी सी ज़िन्दगी में
ख्वाबों का नूर लेकर आई थी मै ,
हसरतो के झूलों को
सावन में देखा था मैंने ,
हाँ सच है कभी झूला नहीं ,
कभी तुम्हे ठेला नहीं मैंने
गर्मजोशी के अहसास को दबाकर
कभी रोका नहीं तुम्हे
कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
इल्ज़ामात की फेहरिश्त में ,
ज़ोर आजमाइश की है तुमने
जानकर अनजान बन,
सरेआम नीलामी की है तुमने ,
जो रिश्ता सात फेरों में बाधा गया
उसकी खूंठ छोड़कर
कहकशों को थामा है तुमने
कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
अपने सेहरे को सड़क पर फ़ेंक कर
कितना सुकून है तुम्हे
किसी के लहू के अंश पर बैठकर
रोज़ इनको उनको सबको
अच्छा है फुसफुसाना तुम्हे
एप पर मदमस्त ,व्यस्त
वो ब्लेस्ड मानते है तुम्हे
कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
मेरी कोशिश थी और रहेगी ,
माँ ही सही थोड़ा और बहेगी
आँखों की नमी अब थमेगी
पांच वर्षो में जो पिघला है
वो बर्फ फिर बनेगी
बढ़ेगी ,चढ़ेगी ,चलेगी
मर्यादित ज़िन्दगी सौंप कर तुम्हे ,
कितना अच्छा लगता है ,
तारीफें करना तुम्हे ,
तूलिका