Wednesday, July 17, 2019

बीज

जो पास बैठा है वो कोई पोशाक सा है ,
मानो नीम में जैसे बेल आगोश सा है ,
उलझनों की टीस में जिधर भी देखो ,
सावन में भी मानो बादल खामोश सा है ।

सूखती नदिया नहीं,
मन भी सूख गए है ,
जो चमकता दीखता है डीपी में
वो रोता कंकाल सा है ।

मैं,
तुम,  वो,  ये,  उनकी ,इनकी, में ,
चाय का प्याला ,
जंजाल सा है ।

दीवारों पर लाइक्स का सैलाब तो है ,
पर खुशियों का मेला वीरान सा है ।
बदलती नहीं वो तंजभरी आँखे ,
जो ज्ञान के जमघट में अनजान सा है ।

कोशिश है ,थी ,
की रहेगी हमारी ,
जो मैंने बीज बोये है
वो कल को पैगाम सा है ।
तूलिका ।