जो पास बैठा है वो कोई पोशाक सा है ,
मानो नीम में जैसे बेल आगोश सा है ,
उलझनों की टीस में जिधर भी देखो ,
सावन में भी मानो बादल खामोश सा है ।
सूखती नदिया नहीं,
मन भी सूख गए है ,
जो चमकता दीखता है डीपी में
वो रोता कंकाल सा है ।
मैं,
तुम, वो, ये, उनकी ,इनकी, में ,
चाय का प्याला ,
जंजाल सा है ।
दीवारों पर लाइक्स का सैलाब तो है ,
पर खुशियों का मेला वीरान सा है ।
बदलती नहीं वो तंजभरी आँखे ,
जो ज्ञान के जमघट में अनजान सा है ।
कोशिश है ,थी ,
की रहेगी हमारी ,
जो मैंने बीज बोये है
वो कल को पैगाम सा है ।
तूलिका ।
मानो नीम में जैसे बेल आगोश सा है ,
उलझनों की टीस में जिधर भी देखो ,
सावन में भी मानो बादल खामोश सा है ।
सूखती नदिया नहीं,
मन भी सूख गए है ,
जो चमकता दीखता है डीपी में
वो रोता कंकाल सा है ।
मैं,
तुम, वो, ये, उनकी ,इनकी, में ,
चाय का प्याला ,
जंजाल सा है ।
दीवारों पर लाइक्स का सैलाब तो है ,
पर खुशियों का मेला वीरान सा है ।
बदलती नहीं वो तंजभरी आँखे ,
जो ज्ञान के जमघट में अनजान सा है ।
कोशिश है ,थी ,
की रहेगी हमारी ,
जो मैंने बीज बोये है
वो कल को पैगाम सा है ।
तूलिका ।