Tuesday, August 8, 2017

ऋतु

खनक की ,
ठनक की
राग की ,
विराग की,
करार के इंकार की ,
उन झूठे वार की ,
स्वयं से तकरार की ,
सम्मान के ज़ार की ,
प्रोजेक्ट्स के यार की
अंगों के प्यार की ,
अंग्रेजी सरकार की
मेल खाते विचार की ,
आज़माइश है तुमसे ,
ख्वाइश है तुमसे ,
कम स कम
बसंत से धोखा मत करना
बसंत जीवन की ,
तुम्हारे जीवन की
सदाबहार ऋतु है .
तूलिका





बसंत

पांच साल में ,
जेठ की धूप ही देखी,
खुशगवार तो तुम रहे ,
सदाबहार बसंत ,
साल की चार ,
नहीं छह
नहीं
बारह महीने
बसंत ही बसंत
तीन वर्ष से बसंत
बसंत ही बसंत
खुश हूँ ,
इस जेठिली दुनिया में
तुम्हारे पास बसंत ऋतु है
बसंत ही बसंत .
ऋतु .
तूलिका .

Friday, August 4, 2017

अपना घर

अपना  घर
जहाँ चिड़िया रोज़ मुंडेर पर आती है ,
जहाँ कबूतरों की आवाज़ एक वाइब्रेटर होती है
जहाँ नलके अपने समय पर चलते है
जहाँ किचन में तीन पहर हलचल होती है
जहाँ डाइनिंग टेबल की कुर्सियां
दो बार अपनी जगह बदलती है ,
जहाँ हर संडे वाशिंग मशीन चलती है ,
जहाँ बालकनी की रेलिंग,
संडे सुबहसाफ की जाती है
जहाँ आँगन में संडे को धुप ली  जाती है
जहाँ सोफे पर बच्चे की कार चलती है
जहाँ लैंडलाइन का रिसीवर ,
बच्चा हटा देता है ,
जहाँ क्रिसमस ट्री पर ,
सेंटा मुस्कराता है
जहाँ तुलसी क़े पौधे को
शाम का दीपक जलता है
जहाँ सुबह गमलों से बात की जाती है
जहाँ धोबी शनिवार को कपडे दे जाता है
जहाँ छुट्टी क़े दिन ,
पुरे समय टीवी चलता है ,
जहाँ रात में धीमी  लाल लाइट जलती  है ,
वो घर अपना घर है
तूलिका

Wednesday, August 2, 2017

घर

घर
शीशे पर अब भी अनगिनत बिंदियां होंगी ,
ड्रावर में कई चूड़ियां होंगी ,
कई जोड़े चप्पल दरवाज़ों की कोनो पर होंगे ,
वो लाल ज़रीवाली चप्पल अभी भी टूटी पड़ी होगी ,
शायद चादर के रेशे में एक जोड़ी बिछिया होगी ,
एक छोटे संदूक में पायल  और बालियां भी ,
पूजाघर में मेरी रामायण होगी ,
चूल्हे के नीचे रैक में
कई मसाले होंगे ,
ऊपर की शेल्फ में ,
चूल्हे के बायें तरफ ,
बादाम का पैकेट होगा ,
दीवारों पर मेरे अरमान होंगे ,
बुकशेल्फ पर मेरी इक्छाएं होंगी
रोशनदान से मेरी यादें झांक रही है ,
मेरे सपने से सजे  ,
रंगीन पर्दों को ,
मेरे अपने  घर में .
तूलिका 

आकार

आकार
सुकून है कि तुम किसीके तो अपने हो ,
गम इसका कि अपनों के सपने हो  ,
सपने टंगे थे ,
सपने लगे थे ,
खड़े थे , बैठे थे ,
झांक रहे थे ,ताक रहे थे ,
निहार रहे थे ,आभार रहे थे ,
चुम रहे थे ,झूम रहे थे
घूम रहे थे ,
अब सपने पक रहे है ,
जल रहे है ,कट रहे ,
मिट रहे है ,बन रहे है .
अब सपने दिख नहीं रहे ,
फुट रहे है ,खिल रहे है ,
आकार ले रहे है ,
सपने साकार हो रहे है .
तूलिका .