Friday, November 11, 2011

परिवर्तन


परिवर्तन 

रगड़ते बर्तनों से जैसे रगड़ आवाज़ होती है ,
कहीं चुभे कोई जज्बा तो रोती साज़ होती है ,
संभाला  था उसने कई बार उसको ,
लेकिन हर बार कहाँ वो आँख से इनकार होती  है |

वो दिन कल ही था जब माँ ने पसंद की थी मेरी चप्पल ,
की चलो अब हम दोनों के कदम इससे सवरेंगे,
की तुम कंधे को पार कर  आ गई हो पास में ,
अब हम भी अहले चमन पर राज़ करेंगे |

कांटे भी हो साथ  ,चलना संभलकर ,
की मंजिल पर कई राही साथ मिलेंगे ,
हमनफस ,हमजुबान हमसफ़र भले दिखें ,
कदम साथ रख बढ़ने की कोशिश कम करेंगे |

गीले आटे से ना बन पाए जैसे रोटी ,
निराशा के बादल वो झंझावार करेंगे ,
रोंके तुम्हे कड़कती बिजलियों की चमक ,
गर  डटी रहो तो मानसून बदलेंगे |

इतना समझकर भी क्यूँ आँचल है तुम्हारा गीला,
निश्चिन्त रहो माँ हम पतवार मोड़ेंगे ,
समय के दो अंश आज आगे जो चल रहे ,
तुम देखना सब एक दिन धार बदलेंगे |

तूलिका 

Thursday, November 3, 2011

परिंदा


परिंदा 

शोर कोतुहल से कही दूर ढूंढ़ता है बसेरा ,
ये मन का परिंदा |
वो मीठी मुस्कान ,वो पिली सरसों का डेरा ,
ये मन का परिंदा |
फ़िक्र भी उड़ती रहे ,जहाँ  निश्चिन्त  हो सवेरा ,
ये मन का परिंदा |
चांदिनी  रात  घास पर ओस का घेरा , 
ये मन का परिंदा  |
साथ ऐसा  जो  ना  हो मटमैला ,  
ये मन का परिंदा |
ऐसी  ज़मी  जहा खुशियों  का हो मेला,  
ये मन का परिंदा \
मुल्क   ना   सरहद  ना सीमओं  ने  हो टोका  ,
की  अनंत  आकाश  को  उड़ने  चला  ,
ये मन का परिंदा |

तूलिका