परिवर्तन
रगड़ते बर्तनों से जैसे रगड़ आवाज़ होती है ,
कहीं चुभे कोई जज्बा तो रोती साज़ होती है ,
संभाला था उसने कई बार उसको ,
लेकिन हर बार कहाँ वो आँख से इनकार होती है |
वो दिन कल ही था जब माँ ने पसंद की थी मेरी चप्पल ,
की चलो अब हम दोनों के कदम इससे सवरेंगे,
की तुम कंधे को पार कर आ गई हो पास में ,
अब हम भी अहले चमन पर राज़ करेंगे |
कांटे भी हो साथ ,चलना संभलकर ,
की मंजिल पर कई राही साथ मिलेंगे ,
हमनफस ,हमजुबान हमसफ़र भले दिखें ,
कदम साथ रख बढ़ने की कोशिश कम करेंगे |
गीले आटे से ना बन पाए जैसे रोटी ,
निराशा के बादल वो झंझावार करेंगे ,
रोंके तुम्हे कड़कती बिजलियों की चमक ,
गर डटी रहो तो मानसून बदलेंगे |
इतना समझकर भी क्यूँ आँचल है तुम्हारा गीला,
निश्चिन्त रहो माँ हम पतवार मोड़ेंगे ,
समय के दो अंश आज आगे जो चल रहे ,
तुम देखना सब एक दिन धार बदलेंगे |
तूलिका