Sunday, August 7, 2011

भूल

भूल

तैरना ना आता हो तो ,
सरिता की ओर बढना,
शायद यह मेरी भूल थी |

क्यूंकि दूर से साफ़ ,
स्वछ ,निश्छल ,
धीर गंभीर दिखने वाली नदी में ,
हजम करने की भी प्रवृति होती है ,
बहाव निर्झड़ी रूपी स्वक्षता ,
भक्षक भी बन सकती है ,
यह समझने में भूल की थी मैंने !

बाहरी सरलता में लीन होकर ,
दिखावे में लिप्त होकर ,
अन्दर छिपे अदृश्य भाप को

समझने में भूल की थी मैंने !

दुविधा का विषय नहीं ,
की प्रकृति और मानव में
अंतर नहीं ,
क्यूंकि नकारात्मक पक्ष
दोनों में व्याप्त है |

जिसे संबल देने की कोशिश की ,
उसीने निर्बल बना दिया ,
समर्पण की पूर्ण भावना को ,
सिरे से नकार दिया ,
ऐसे सहज बहाव को ,
समझने में भूल की थी मैंने !

वर्तमान क्षण में ,
निराश ना होकर ,
देती हूँ तुम्हे धन्यवाद ,
तुम्हारा ये उदारवाद ,
की भविष्य में प्राप्य ,
ऐसे कटु अनुभवों को ,
समझने में ना भूल करूँ मै !!!

तूलिका





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