Thursday, April 23, 2020

काम

जो कुछ नही करते ,बड़ा वो काम करते हैं ,
यहाँ की वहाँ जाकर परेशान करते हैं ।
गर मिल जाए उनकी नज़र से नज़र ,
झुक झुक कर कई बार सलाम करते हैं।
करते हैं कल कल और आज की कल ,
बैठा साथ कोई मिल जाये तो ,इत्मिनान करते हैं ।
करते थे कभी दरवाज़े की जो ओट में बातें ,
बातें वही जाकर सरेआम करते हैं ।
समझते हैं हमे नादान , हम कुछ बोलते नहीं ,
हम खामोशी से अपनी दोस्ती कुर्बान करते हैं ।
कि ये तुम की तुम में , दिसंबर और जून में ,
हम जीने का इंतज़ाम करते हैं ।
जेठ की दुपहरी में भी मिल जाती है ठंडक ,
जब मेरे सब्र के चर्चे वो सुबह शाम करते है ।
उम्मीद की छांव में गर बैठ जाओ तुम ,
तो डाल के पंछी भी मंगलगान करते हैं ।
तूलिका ।