Saturday, April 11, 2020

कॉफ़ी

सुबह 3 .15  पर ,
कॉफ़ी और  चीनी  को  फेटते  हुए ,
बिना किसी डालगोना इफेक्ट से प्रभावित हुए ,
समय के दो रंग दीखते हैं ।
श्वेत ,सुन्दर डायरी  का पन्ना खुल जाता है ,
जहाँ कई बार हमने
मीठे ,चटकीले, सजीले रेशमी स्वेटर बुने थे ,
जिसे देखलेने से ख्वाब मुकम्मल हो जाते है ।
पश्मीने सिल्क की शाल मानो कंधो पर खेलने लगती है ।
चिड़ियों की चहक ,पकवानों की महक ,
पब्लिक ट्रांसपोर्ट का शोर ,
बाइक के शीशे से झांकता मन का चोर ,
बच्चों के खेलने और हर बॉल पर बॉउंड्री की आवाज़ ,
रूह को छू सी जाती है ।
तभी एक धुंधला ,हल्का भूरा ,
मानो सूखे पेड़ की ठूंठ सा ,
पतझड़ में पिली सड़क सा ,
हवामहल के पास उड़ती रेत सा ,
चंद्रभागा के किनारे पानी के साथ आये सीप सा ,
सोन नदी के किनारे बने टीले सा,
ढाकबनी  के लाल पत्थर सा,
गोधूलि शाम सा महसूस होता है ।
जो उल्लास की सुबह का इन्तिज़ार कर रही  है ।

तूलिका  ।