Thursday, April 23, 2020

खिड़कियाँ

आज बात उनकी है ,
जो "धारा" की एड देखकर जलेबी खाने निकल पड़ते थे ।
आज बात उनसे है जिन्होंने ,
"गरुड़" फोन को नासा का रेडार समझा था ।
आज बात उनसे है ,
जो एक रिंग बजते ही "बीटल" का रिसीवर उठाने दौड़ पड़ते थे ।
आज बात उनकी है , जो माँ के डांटने पर ,
"सवैयों" को हक्का नूडल मानकर खाते थे ।
आज बात उनकी है ,
जो अखबार पाते ही "स्पोर्ट्स" पेज पर पहुंच जाते थे ।
आज बात उनकी है ,
जिनकी नई पोशाकें ,दीवाली ,पूजो और ईद का आना होती थी ।
आज बात उनकी है ,
जिनके लिए "बजाज" ही "इंडिगो" हुआ करता था ।
आज बात उनकी है ,
जो "नान-खटाई" खाने के लिए साल का इंतजार करते थे ।
आज बात उनकी है ,
जिनके लिए "भौंओं" के तनने का विषय ,
आम्रपाली ,दशहरी और लँगड़े का मीठापन हुआ करता था ।
आज बात उनकी है ,
जिनका हफ्ते में एक दिन आलू टिक्की और आइस टी लेना ,फीलिंग ब्लेस्ड होता था ।
आज बात उनकी है ,
जहां गर्मियों की दोपहर में "इश्क़" के पैमाने गढ़े जाते थे ।
आज बात उनकी है ,
जिनके लिए "गूगली गूगली वुश" ही "बीबी" क्रीम हुआ करती थी ।
आज बात उनकी है ,
जिन्हीने "सुमन सौरभ" और "मनोरमा ईयर बुक" में करियर तराशे थे ।
आज बात उनकी है ,
जिनके लिए प्यार "शालीमार" हुआ करता था ।
आज बात उनकी है ,
जो तीन की सीट पर अनजान चौथे को भी जगह देते थे ।
लाज़िम है कि ,हमारे तुम्हारे ,
दोष प्रत्यारोप ,
गलतियाँ छुपाना और ढूंढना सब लॉकडाउन में था ।
और खुले थे दिल , दरवाज़े , दिमाग और गर्मजोशी की खिड़कियां।
तूलिका ।